Thursday, April 29, 2010

श्री हनुमान जी की आरती

आरती  कीजै  हनुमान  लला   की , दुष्टदलन  रघुनाथ  कला  की |
जाके  बल  से  गिरिवर  कांपै , रोगदोष  भये  निकट  न  झांके |
अन्जनी  पुत्र  महा  बलदाई , संतन  के  प्रभु  सदा  सहाई |
दे  बीणा  रघुनाथ पठाए , लंका  जारि  सिया  सुधि  लाये |
लंका  सो  कोटि  समुद्र  सी  खाई , जात पवनसुत  वार  न  लाई|
लंका  जारि  असुर  सब  मारे , सियारामजी  के  काज  सँवारे |
लक्ष्मण  मुर्छित  परे  सकारे , आनि  संजीवन  प्राण  उवारे |
पैठी  पाताल  तोरी  यम्कारे , अहिरावन  की  भुजा  उखारे |
बाए   भुजा  सुब  असुरदल  मारे , दाहिने  भुजा  संतजन  तारे |
सुर  नर  मुनिजन  आरती  उतारे , जय  जय  जय  हनुमानजी  उचारे |
कंचन  थार  कपूर  लौ  छाई , आरती  करत  अंजनी  माई|
जो  हनुमानजी  की  आरती  गावै , सो  वैकुण्ठ  अमरपद  पावै |
लंका  विध्वंस  किये  रघ्रही , तुलसीदास  प्रभु  कीर्ति  गाही |

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